मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (एमएएनयूयू) में अंतर्राष्ट्रीय उर्दू सामाजिक विज्ञान कांग्रेस का समापन

हैदराबाद 4 फरवरी ( प्रतिनीधी), हाल के वर्षों में सामाजिक विज्ञान के विमर्श, विशेष रूप से समाजशास्त्र, सीमांत और वंचित समूहों की सामाजिक और जीवंत वास्तविकता की जांच करने से दूर हो गए हैं, जिसका कारण अमूर्त सैद्धांतिक पूर्वधारणाओं और जीवित सामाजिक अनुभव के बीच निरंतर संबंध है। यह बात सेंटर फॉर इस्लामिक स्टडीज, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मुहम्मद तालिब ने मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (एमएएनयूयू) में स्कूल ऑफ आर्ट्स और द्वारा आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय उर्दू सामाजिक विज्ञान कांग्रेस दक्षिण एशिया में सामाजिक विज्ञान' के समापन सत्र में कही। उन्हाेंने कहा कि, 1947 के बाद सामाजिक विज्ञान में महत्वपूर्ण प्रश्नों से निपटने में क्रमिक गिरावट की पहचान की। उन्होंने सामाजिक वैज्ञानिकों से गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न जैसे कठिन प्रश्न पूछने और अधिक से अधिक क्षेत्र-आधारित शोधों के साथ समाज में बढ़ते हाशिए के कारण पूछने का अनुरोध किया।अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर अख्तरुल ने भारतीय धर्मनिरपेक्ष मॉडल को पूरी दुनिया के लिए सर्वश्रेष्ठ और अनुकरणीय होने की संभावना का सुझाव दिया।

उन्होंने शांति स्थापित करने और भारतीय गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को मजबूत करने के लिए विविध और बहु-धार्मिक भारतीय समाज के साथ बातचीत शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया। मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (एमएएनयूयू) के वाइस चांसलर प्रो. एस.एम. रहमतुल्ला ने स्वागत भाषण किया। पूर्व चांसलर एवं योजना आयोग के पूर्व सदस्य  मुख्य अतिथि प्रो. सैयदा सैयदैन हमीद ने याद किया कि कैसे मानू अस्तित्व में आया और इस प्रयास में उर्दू बुद्धिजीवियों की भूमिका को स्वीकार किया। उन्होंने भारतीय समाज में बढ़ती असहिष्णुता  काे  भारतीय धर्मनिरपेक्ष समाज के ताने-बाने को खतरा हाेने की बात कही । विशिष्ट अतिथि  व सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रो. मुश्ताक अहमद ने सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के लिए आवंटित किए जा रहे धन की कमी पर अफसोस जताया।  उन्होंने विद्वानों से अपने दृष्टिकोण में अधिक निडर और वस्तुनिष्ठ होने और अन्य संस्थानों के साथ अकादमिक सहयोग करने के लिए कहा। अवसर पर डीन, एसएस तथा  संयोजक, आईयूएसएससी प्रो. फरीदा सिद्दीकी ने कांग्रेस की एक संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की। कांग्रेस के दौरान दो पूर्ण सत्र और 9 तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। दो पूर्ण सत्रों में, सामाजिक विज्ञान के विभिन्न विषयों के प्रसिद्ध वक्ताओं ने अपने-अपने अध्ययन के क्षेत्रों पर विशेष व्याख्यान दिए। कांग्रेस में प्रस्तुत किए गए कुल पत्रों की संख्या 89 थी, जिनमें से 34 महिला विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए थे।